तमस (उपन्यास) : भीष्म साहनी
तमस (उपन्यास) : प्रथम खंड
तमस (उपन्यास) : एक
आले में रखे दीये ने फिर से झपकी ली। ऊपर, दीवार में, छत के पास से दो ईंटें निकली हुई थीं। जब-जब वहाँ से हवा का झोंका आता, दीये की बत्ती झपक जाती और कोठरी की दीवारों पर साये से डोल जाते। थोड़ी देर बाद बत्ती अपने-आप सीधी हो जाती और उसमें से उठनेवाली धुएँ की लकीर आले को चाटती हुई फिर से ऊपर की ओर सीधे रुख़ जाने लगती। नत्थू का साँस धौंकनी की तरह चल रहा था और उसे लगा जैसे उसके साँस के ही कारण दीये की बत्ती झपकने लगी है।
नत्थू दीवार से लगकर बैठ गया। उसकी नज़र फिर सुअर की ओर उठ गयी। सुअर फिर से किकियाया था और अब कोठरी के बीचोबीच कचरे के किसी लसलसे छिलके को मुँह मार रहा था। अपनी छोटी छोटी आँखें फ़र्श पर गाड़े गुलाबी-सी थूथनी छिलके पर जमाये हुए था। पिछले दो घण्टे से नत्थू इस बदरंग, कँटीले सुअर के साथ जूझ रहा था।
तीन बार सुअर की गुलाबी थूथनी उसकी टाँगों को चाट चुकी थी और उनमें से तीखा दर्द उठ रहा था। आँखें फ़र्श पर गाड़े सुअर किसी वक्त दीवार के साथ चलने लगता, मानो किसी चीज़ को ढूँढ़ रहा हो, फिर सहसा किकियाकर भागने लगता। उसकी छोटी-सी पूँछ जहरीले डंक की तरह, उसकी पीठ पर हिलती रहती, कभी उसका छल्ला-सा बन जाता, लगता उसमें गाँठ पड़ जायेगी, मगर फिर वह अपने-आप ही खुलकर सीधी हो जाती थी। बायीं आँख में से मवाद बहकर सुअर के थूथने तक चला आया था।
जब चलता तो अपनी बोझिल तोंद के कारण दायें-बायें झूलने सा लगता था। बार बार भागने से कचरा सारी कोठरी में बिखर गया था। कोठरी में उमस थी। कचरे की जहरीली बास, सुअर की चलती साँस और कड़वे तेल के धुएँ से कोठरी अटी पड़ी थी। फ़र्श पर जगह-जगह ख़ून के चित्ते पड़ गये थे लेकिन ज़रक़ के नाम पर सुअर के शरीर में एक भी ज़ख्म नहीं हो पाया था। पिछले दो घण्टे से नत्थू जैसे पानी में या बालू के ढेर में छुरा घोंपता रहा था।
कितनी ही बार वह सुअर के पेट में और कन्धों पर छुरा घोंप चुका था। छुरा निकालता तो कुछ बूँदें ख़ून की फ़र्श पर गिरतीं, पर ज़ख्म की जगह एक छोटी सी लीक या छोटा सा धब्बा भर रह जाता जो सुअर की चमड़ी में नज़र तक नहीं आता था। और सुअर गुर्राता हुआ या तो नत्थू की टाँगों को अपनी थूथनी का निशाना बनाता या फिर से कमरे की दीवार के साथ साथ चलने अथवा भागने लगता। छुरे की नोक चर्बी की तहों को काटकर लौट आती थी, अन्तड़ियों तक पहुँच ही नहीं पाती थी।
मारने को मिला भी तो कैसा मनहूस सुअर। भद्दा इतनी बड़ी तोंद पीठ पर के बाल काले, थूथनी के आस पास के बाल सफेद कँटीले जैसे साही के होते हैं।